जातिगत जनगणना का निर्णय: लाभ और नुकसान की सच्ची तस्वीर

 ✍️ श्री अवध डाट काम पर खबरों के लिए संपर्क करें 9839627223


पारदर्शिता, निष्पक्षता और संवेदनशीलता को ध्यान में रख बनाने होंगे नियम : ए के तिवारी 

जौनपुर। भारत सरकार ने हाल ही में देशभर में जातिगत जनगणना कराने का आदेश जारी किया है। यह निर्णय लंबे समय से चली आ रही मांगों और सामाजिक न्याय के पक्षधर संगठनों के दबाव के बीच लिया गया है। इस कदम के दूरगामी प्रभाव होंगे, जो न केवल सरकारी नीतियों और योजनाओं को प्रभावित करेंगे, बल्कि समाज की संरचना और राजनीति में भी गहरा बदलाव ला सकते हैं।

उक्त मुद्दे पर बात करते हुए  निवासी और स्वयं सामाजिक कार्यकर्ता ए के तिवारी जौनपुर ने बताया कि, जातिगत जनगणना से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि, सरकार के पास अब समाज के हर वर्ग की वास्तविक जनसंख्या का सटीक आंकड़ा होगा। इससे पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य कमजोर समुदायों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करना आसान होगा। इससे नीतिगत योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से तैयार किया जा सकेगा और संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण संभव होगा।

ए के तिवारी ने आगे कहा कि, यह जनगणना सामाजिक न्याय और आरक्षण नीति को वैज्ञानिक आधार देने में भी मदद करेगी। अभी तक जातियों की संख्या और स्थिति का कोई आधिकारिक डाटा नहीं था, जिससे कई बार योजनाओं की प्रभावशीलता संदेह में रहती थी। इस नए आंकड़े के आधार पर आरक्षण की समीक्षा भी की जा सकती है, जिससे उन वर्गों को वास्तविक लाभ मिल सके जो अब तक वंचित रह गए हैं।

तिवारी जी ने आगे बताया कि, इस प्रक्रिया के कुछ संभावित नुकसान भी हैं। जातिगत आंकड़ों के सार्वजनिक होने से सामाजिक विभाजन की रेखाएं गहरी हो सकती हैं। राजनीतिक दल इस जानकारी का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीति के लिए कर सकते हैं, जिससे सामाजिक सौहार्द्र पर असर पड़ सकता है। जातीय पहचान को बार-बार उजागर करने से आपसी भेदभाव और तनाव भी बढ़ने की आशंका है।

इसके अतिरिक्त, अगर आंकड़ों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया या उनके आधार पर गलत नीतियां बनाई गईं, तो इससे समाज में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। कुछ जातियाँ खुद को हाशिये पर पाकर नाराज हो सकती हैं, जिससे आंदोलनों और विरोध का माहौल भी बन सकता है।

जातिगत जनगणना का यह निर्णय भारत के सामाजिक ढांचे को गहराई से प्रभावित करेगा। यदि इस प्रक्रिया को पारदर्शिता, निष्पक्षता और संवेदनशीलता के साथ संपन्न किया गया, तो यह देश के विकास में एक सकारात्मक मोड़ साबित हो सकता है। लेकिन अगर इसका राजनीतिक दोहन हुआ, तो यह समाज को बांटने का माध्यम भी बन सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार इस संवेदनशील कदम को सोच-समझकर और राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ाए। ए के तिवारी ने बताया कि उक्त बाते खुद के सोच के हिसाब से की गई है जबकि सत्ता में और भी समझदार लोग है जो जातिगत जनगणना को लेकर और अच्छा कार्य कर सकते हैं।

Post a Comment

0 Comments